नए वित्त वर्ष के शुरू होने में चंद घंटे बचे हैं. बीते साल की बात करें तो अधिकतर आर्थिक आंकड़े निगेटिव थे. इस वजह से सरकार काफी दबाव में नजर आई. आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए सरकार की ओर से तमाम प्रयास भी किए गए. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजदू उम्मीद के मुताबिक नतीजे नजर नहीं आए. यही वजह है कि सरकार को आर्थिक आंकड़े भी बदलने पड़ गए. आज हम कुछ ऐसे ही आर्थिक आंकड़ों के बारे में बताने जा रहे हैं.
जीडीपी के आंकड़े बदले गए
सरकार ने बीते फरवरी महीने में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के जीडीपी ग्रोथ आंकड़े पेश किए. इन आंकड़ों को पेश करते हुए चालू वित्त के शुरुआती दो तिमाही के आंकड़ों को संशोधित कर दिया गया. सरकार के इस फैसले से आर्थिक जगत के एक्सपर्ट भी हैरान थे.
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पहले वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ की दर 5 फीसदी पर थी. वहीं दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट के आंकड़े 4.5 फीसदी पर थे. हालांकि, सरकार के संशोधन के बाद 2019-20 की पहली तिमाही के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट को 5.6 फीसदी और दूसरी तिमाही के लिए 5.1 फीसदी कर दिया गया है.
राजकोषीय घाटे का लक्ष्य
सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.8 फीसदी कर दिया है. इससे पहले राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.3 प्रतिशत रखा गया था. जाहिर सी बात है कि सरकार अपने ही लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकी है. बढ़ते राजकोषीय घाटे का असर वही होगा जो आपकी कमाई के मुकाबले खर्च बढ़ने पर होता है. खर्च बढ़ने की स्थिति में सरकार को कर्ज लेना पड़ता है. बता दें कि मोदी सरकार लगातार तीसरे साल राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी.
कर्ज के लक्ष्य को बदला
सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के मार्च तक 4.99 लाख करोड़ रुपये कर्ज जुटाने का लक्ष्य रखा गया है. इससे पहले सरकार ने कर्ज जुटाने के लिए 4.48 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था. ऐसे में साफ है कि सरकार को बाजार से अब पहले के मुकाबले अधिक कर्ज लेना पड़ेगा.
विनिवेश का लक्ष्य
बीते साल यानी 2019 में 5 जुलाई को पेश किए गए बजट में चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन अब इसे संशोधित कर 65,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है. मतलब ये कि सरकार को जिन कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर रकम वसूली करनी थी वो नहीं हो सका है.